cardiac cycle
हृदय चक्र मेडिकल छात्राओं के लिए: बायोलॉजी और फिजियोलॉजी हिंदी ( biology and physiology explanation)
कार्डियो वैस्कुलर सिस्टम का मुख्य कार्य भागों को ऑक्सीजन और पोषक तत्व देना
और भागों से कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य खर्च की गई सामग्री को निकालना है।
हृदय 2 पंप के रूप में कार्य करता है, हृदय एक बार रक्त कार्बन डाइऑक्साइड ले जाने वाले दाईं ओर फेफड़ों में अलग पंप बनाता है।
फिर दूसरी बार यह हृदय के बाईं ओर से शरीर के अंगों में ऑक्सीजन के साथ मिश्रित रक्त को बहाता है। याद रखें जॉब एक बार हृदय या हार्ट कॉन्ट्रैक्ट या सिकुड़ ता है और दूसरी बार सिकुड़ने तक जो भी बदलाव होओगे उसे कार्डियक साइकिल या हृदये चक्र कहा जाता है।
हृदयचक्र को समझने के लिए
1. हृदय चक्र का चरण।2. हृदय चक्र के दौरान की घटनाएँ।3. प्रत्येक चरण का समय।हृदय चक्र एक दिल के संकुचन की शुरुआत से लेकर अगले चक्र की शुरुआत तक विद्युत और यांत्रिक घटनाएं है।
नॉर्मल हार्ट रेट 75 बीट / मिनट है। 1 बीट का समय =
60/75 = 0.8 सेकंड।
कार्डिएक साइकिल के भाग1. अटरिया सिस्टोल (0.1 सेकंड)2. अटरिया डायस्टोल (0.7 सेकंड)3. वेंट्रिकुलर सिस्टोल (0.3 सेकंड)4. वेंट्रिकुलर डायस्टोल। (0.5 सेकंड) अटरिया चक्र (0.8 सेकंड)वेंट्रिकुलर चक्र (0.8 सेकंड)
1.अटरिया सिस्टोल (0.1 सेकंड):
सिस्टोल का अर्थ है दबाव। जब इलेक्ट्रिक डिस्चार्ज सिनोट्रियल नोड रिलीज होता है, तो एट्रिया दबाव के विभिन्न भागों में शुरू होती है। जब एट्रिल की दीवारें सिकुड़ती हैं, तो उनमें दबाव बढ़ जाता है। दाएं अटरिया में दाब 4-6
mm Hg तक बढ़ सकता है, बायां अटरिया दबाव 7-8 mmHg। इस कारण से दाएं अटरिया से रक्त दाएं ओर के वेंट्रिक्ल में धकेल दिया जाता है। इलेक्ट्रिक डिस्चार्ज अटरिया दीवारों में सिनोट्रियल नोड से शुरू होता है, यह डिस्चार्ज बाद में एट्रियोवेंट्रिकुलर नोड में जाता है जो वेंट्रिकुलर दीवारों में स्थित है।
2. अटरिया डायस्टोल (0.7 सेकंड):
डायस्टोल का मतलब है विश्राम, यहां दीवारें एक-दूसरे से दूर चली जाएंगी। यह वेंट्रिकुलर सिस्टोल और वेंट्रिकुलर डायस्टोल के अधिकांश के साथ मेल खाता है। एट्रिया रिलैक्सेशन से अटरिया में धीरे-धीरे भरने और वेना कावा नसों में अधिक दबाव पड़ने का कारण बनता है। वेना कावा नसों में बड़े दबाव के कारण रक्त अटरिया में प्रवाहित होता है जिसमें कम दबाव होता है। रक्त से भरने के कारण अटरिया में दबाव धीरे-धीरे बढ़ता है।
3. वेंट्रिकुलर सिस्टोल (0.3 सेकंड):
इलेक्ट्रिक डिस्चार्ज की शुरुआत सिनाट्रियल नोड से एट्रीवेंट्रिकुलर नोड तक पहुंचती है, इस वजह से अब वेंट्रिकल की दीवारें सिकुड़ने लगेंगी। यहां वेंट्रिकुलर दीवारें सिकुड़ेंगी क्योंकि इलेक्ट्रिक डिस्चार्ज वेंट्रिकुलर मांसपेशियों तक पहुंच जाएगा। - जब सिकुड़न होती है तो वेंट्रिकल में बहुत दबाव होता है।- इससे उल्टा दबाव बढ़ जाता है जो एट्रिआ और वेंट्रिकुलर के बीच के वाल्व को बंद कर देगा (बायिकसिड और ट्राइकसपिड वाल्व)। इस वाल्व के बंद होने के कारण एक ध्वनि उत्पन्न होती है जिसे प्रथम हृदय ध्वनि या एचएस 1 कहा जाता है।- अब एट्रियम और वेंट्रिकल्स के बीच के दोनों वाल्व बंद हो गए हैं और सेमी ल्यूनर वाल्व नामक वेंट्रिकल्स के आगे के वाल्व भी बंद हो गए हैं, अब
डिब्बे की तरह बंद हैं।- दाएं वेंट्रिकल दबाव 10-13mmHg तक और बाएं वेंट्रिकल दबाव लगभग 80
mmHg तक पहुंचने तक दबाव बढ़ता रहता है।- पीछे के वाल्व जो एट्रियो वेंट्रिकुलर वाल्व हैं वे नहीं खोल सकते हैं, लेकिन आगे की तरफ वाल्व जो अर्ध चंद्र वाल्व खुले हैं, वेंट्रिकल में दबाव आगे की रक्त नलिकाओं की तुलना में अधिक है।- अब वेंट्रिकल्स से रक्त निकाला जाता है। दाईं ओर के वेंट्रिकल ने अपने रक्त को पुल्मोनरी आर्टरी में खाली कर दिया। बाएं वेंट्रिकल को आउर्टा में खाली कर दिया।-
1 तरफ से वेट्रिकल के 70-80 मिलीलीटर रक्त में सिस्टोल निकाला जाता है जिसे
स्ट्रोक वॉल्यूम कहा जाता
है। यह बाएं और दाएं दोनों तरफ समान है। लेकिन सिस्टोल के बाद वेंट्रिकल में बचा रक्त 50 मिलीलीटर है जिसे
अंत डायस्टोलिक मात्रा कहा जाता है। तो कुल मात्रा जो मौजूद थी वह 70 + 50 =
120 ml।
4. वेंट्रिकुलर डायस्टोल:
वेंट्रिकुलर सिस्टोल समाप्त
हो जाने के बाद अब उनकी दीवारें चौड़ी होनी शुरू लगेंगी जिसे
वेन्ट्रिकुलर डायस्टोल कहा जाता है।
-वेंट्रिकल्स
का प्रेशर अब काम होने लगेगा, धीरे धीरे प्रेशर कम होने की वजह से यह प्रेशर
एओर्टा और पल्मोनरी आर्टरी के प्रेशर से भी काम हो जायेगा। जिसकी वजह से
उल्टा दबाव बनता है और सेमि लूनर वाल्व( एओर्टिक और पल्मोनरी वाल्व ) बंद हो
जायेंगे। बंद होने की वजह से एक आवाज़ बनती है जिसे सेकंड हार्ट साउंड कहा
जाता है या हस२।
-धीरे
धीरे वेंट्रिकुलर प्रेशर काम होता रहता है और अटरिया के प्रेशर से भी
काम हो जाता है ( वेंट्रिकलुअर प्रेशर काम होने से ही अटरिया का रक्त
वेंट्रिलेस में आ पायेगा।
-
अब अटरिया का रक्त वेंट्रिकल्स में भरने लग जाता है और वेंट्रिकल्स में प्रेशर
बढ़ना शुरू होजाता है।
हार्ट साउंड्स:
हार्ट साउंड्स ४ प्रकार
के होते हैं। दिल की दो सामान्य आवाजें या साउंड्स हैं पहली और
दूसरी (S1), (S2)। तीसरी और चौथी
असामान्य आवाजें या साउंड्स हैं।
१.
१ हार्ट साउंड : जब अटरिओ वेंट्रिकुलर वाल्व बंद हो जाता है तब बनती
है। अऊर इसकी आवाज़ LUBB की तरह सुनाई देती हैं। यह 0.15 सेकंड की होती
हैं। इसे याद करने के लिए ल याद रखें लौ पिच, लाउड, और लौ
फ्रीक्वेंसी। यह मिट्रल अऊर ट्रीकस्पिड एरिया जो छाती पर होती हैं वहां
सुनाई देती हैं। ECG में यह R वेव के साथ मिलती है।
२.
२ हार्ट साउंड : सेमि लूनर वाल्व ( एओर्टिक और पल्मोनरी वाल्वस) के बांड होने पर
आती हैं (अब याद करें आपने कार्डियक साइकिल में १स्ट और सेकंड हार्ट साउंड्स किस
फेज में पढ़ा था।) यह आवाज़ डब्ब या DUBB की तरह आती है। यह
साउंड पल्मोनरी और एओर्टिक एरिया पर सुनाई देती हैं। ECG में यह
T वेव के साथ मिलती है।
३.
३ हार्ट साउंड: जब वेंट्रिकल्स का दिअस्तोल होता है तब वेंट्रिकल्स की दीवारें
गूँज ते हैं जिसकी वजह से ३ हेअर साउंड बनती हैं। यह 0.1 सेकंड लम्बी होती
हैं। ECG में T और P वेव के बीच में पायी जाती।
४.
४ हार्ट साउंड : अटरिया के सिस्टोले के वक़्त बनती हैं। 0.03 सेकण्ड्स लुम्बी
होती हैं।
1. आशा करता हूँ आज
का विषय आप को समाज
आया होगा आपके सुझाव के लिए ज़रूर कमेंट करिये गए ताकि आपके ज्ञान में सुधार कर
सकूं हूं
Comments
Post a Comment
कृपया यहाँ टिप्पणी करें और हमें बताएं कि आपने विषय कैसे पाया और सुधार के लिए अपने सुझाव दें।